
जासं, लुधियाना: बुधवार की सुबह जैन स्थानक में ओजस्वी वक्ता गुरुदेव अचल मुनि म. ठाणा-5 ने धर्म सभा में कहा कि अगर मन की सफाई करनी है तो रोजाना सत्संग में अवश्य आएं। अगर वस्त्र गंदा हो गया तो आप साबुन से धो लोगे, लेकिन मन गंदा हो गया तो क्या करोगे? मन को धोने के लिए सत्संग है। सत्संग के साबुन से मन धुलता है। लोग मंदिर जाते हैं तो कपड़े बदलकर जाते हैं, साफ सुथरे कपडे़ पहनाकर जाते हैं, लेकिन मैं कहना चाहता हूं, सिर्फ कपडे़ बदलकर न जाएं, बल्कि अपना मन भी बदलकर जाएं, अपनी विचार धारा अपनी सोच भी बदलकर जाएं। क्योंकि प्रभु तुम्हारे कपडे़ नहीं देखते, बल्कि वह तो तुम्हारे मन को देखते हैं, आपकी भावना को देखते हैं, कि देखों भक्त कैसा शुद्ध मन लेकर आया है। गुरुदेव ने कहा कि विवेक में ही धर्म है। विवेक का शाब्दिक अर्थ है- पृथक-2 करना अर्थात अलग अलग करना। जैसे हंस दूध व पानी को अलग-2 कर देता है। धर्म के कार्यो में प्रवृति करो भाग लो, हिस्सा लो और पापों से अशुभ से हमें भाग जाना है। भगवान महावीर का एक अमर संदेश है कि जीओ और जीने दो। पर आज हम परिवार, समाज व देश को बांट रहे हैं। अपने स्वार्थ के कारण समाज को टुकड़ों में न बांटें। इससे बड़ा और कोई पाप नहीं होगा। अगर नगरी में संत आएं और हम लाभ नहीं लेते, भाग नहीं लेते तो हमें पछताना पडे़गा, अगर संतों के दर्शन नहीं करते, प्रवचन नहीं सुनते तो भी पछताना पड़ेगा।
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