
कथावाचक डॉ. पद्मराज जी महाराज के द्वारा रविवार को सिमडेगा में पंचपरमेष्ठी महामन्त्र का अखंड पाठ करवाया गया। गुरुजी ने पंच परमेष्ठी भगवान की तीन बार वंदना करवाकर जाप का संकल्प करवाया। अरिहंत,सिद्ध परमात्मा सहित महापुरुषों का गुणगान किया गया। जपयज्ञ में समागत भक्तों ने श्रद्धा पूर्वक गुरुदेव और गुरुमां के साथ लयबद्ध होकर पंचपरमेष्ठी महामंत्र का उच्चारण किया। इससे पूरा वातावरण पवित्र और भक्तिमय बन गया। गुरुदेव जी ने श्वेत रुमाल में केसर से स्वस्तिक रंजित करके यजमान के कल्याणार्थ प्रार्थना करके अर्पित किया। मौके पर पद्मराज ने कहा यह गुणपूजक मंत्र है। जगत के सभी महापुरुषों को इस मंत्र के द्वारा नमन किया जाता है। संसार के सभी मंगलों में यह प्रथम मंगल है। इसकी साधना से कभी किसी का अमंगल नहीं हो सकता। यह मंत्र हमारे भीतर विनम्रता को बढ़ाता है। विनय धर्म का मूल है और मूल को सींचने वाला समझदार होता है। विनय के अभाव में कोई भी सद्गुण टिक नहीं पाता। ज्ञानीजनों ने कहा है कि विद्या से विनय बढ़ता है और विनय से पात्रता प्रकट होती है। सचमुच में विनय से व्यक्ति में प्रभु-कृपा पाने की पात्रता बढ़ती है। अर्थात वह प्रभु के प्रेम को पाने वाला सौभाग्यशाली व्यक्ति बन जाता है। दुनियां में अनगिनत लोग हैं जो प्रभु से प्रेम करते हैं कितु वे धन्य हैं जिन्हें प्रभु प्रेम करते हैं। दोनों परिवारों के अलावा सभाध्यक्ष अशोक जैन, गुलाब जैन सहित अनेक सदस्यों ने जाप में सम्मिलित होकर अपना पुण्य बढ़ाया। परिवार के द्वारा जाप में सम्मिलित होने वालों का आभार व्यक्त करके प्रसाद का वितरण किया गया।
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