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ये हैं जैन धर्म का मूल सूत्र

  • Writer: Jain News Views
    Jain News Views
  • Apr 19, 2019
  • 1 min read


मध्य प्रदेश - चांद - छिंदवाड़ा :- शासकीय कॉलेज चांद में महावीर जयंती के उपलक्ष्य में परिचर्चा आयोजित की गई। इसमें प्राचार्य डॉ. डीके गुप्ता ने महावीर स्वामी के जीवनोपयोगी उपदेशों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंसा समाज के अस्तित्व का समापन है। धर्म आत्मा के अनुष्ठान का पर्व है। धर्म पाशविकता का नाश, करुणा का उदय व भाईचारे को विकसित करता है। डॉ. अमर सिंह ने कहा कि प्राणीमात्र का हित, सर्वजन सुखाय आचरण व मौन-मर्यादा के बंधनों को न तोडऩा महावीर स्वामी के उपदेशों के मूल में है। संयम, अपरिग्रह, चेतना का विकास, गतिशीलता व पुरुषार्थ की भावना व्यक्ति को उत्कृष्ट स्थान दिलाती है। सहजता, सरलता व सुबोधजन्यता जनमानस में दिव्यता का संचार करती है। अहिंसा बिना धर्म अधूरा है। आत्मा स्वयं में सर्वज्ञा व आनंद की अजस्र धारा है। शांति व आत्मनियंत्रण अहिंसा के ही रूप हैं।

प्रो. राजकुमार पहाड़े ने अपने वक्तव्य में कहा कि महावीर स्वामी के जीवन दर्शन में किसी के अस्तित्व को मिटाने की अपेक्षा जिओ व जीनो दो का भाव सामाजिक समरसता पैदा करने पर जोर दिया गया है। मनुष्य के दुखों का कारण उसके अपने दोष हैं। प्रो. प्रदीप पटवारी ने कहा कि दुश्मन की बजाय खुद से लड़ो, स्वयं पर विजय प्राप्त करो। प्रो. प्रकाश नागले ने कहा कि स्वयं को जीतना लाखों शत्रुओं पर प्राप्त विजय से बढकऱ है। जीवन के मोह को रहकर दृग गंगाजल से तन मन को तीर्थ बना लो।

 
 
 

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