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आचार्य रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि परमात्मा अरिहंत अनंत गुणों के स्वामी होते हैं। उनके गुणों का वर्णन करना असंभव है। उनके गुणों का आंशिक परिचय देने के लिए हेमचद्राचार्य ने वीतराग स्त्रोत की रचना की। उन्होंने कहा कि अरिहंतों के स्वरूप का वर्णन करने में उनकी बुद्धि अल्प है। यह बात आचार्य रत्नसेन मंगलवार को जैन भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अरिहंत परमात्मा के जीवन में अनेक अतिशय होते हैं।
परमात्मा के जन्म के समय न तो जन्मदात्री माता को पीड़ा होती है और न ही नवजात परमात्मा को। उनके प्रभाव से जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान और मोक्ष कल्याण के समय तीनों लोक में प्रकाश फैल जाता है। देव, पशु, मनुष्य आनंद मग्न हो जाते हैं। आचार्य ने कहा कि परमात्मा अपने च्यवन से ही मति, श्रुत व अवधि ज्ञान के धारक होते हैं। देवता व इंद्र भी मेरु पर्वत पर जन्माभिषेक करते हैं। आचार्य ने बताया कि इस अवधि के २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर हुए। जन्म से ही भौतिक सुखो मेें रह लेकिन इन सुखों से अलिप्त रहे। उन्होंने अपने भोगावली कर्मों के क्षय को जानकर एक वर्ष तक वार्षिक दान दिया व दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने कहा कि चार ज्ञानों की प्राप्ति के बाद भी जब तक केवल ज्ञान प्राप्त नहीं होता तब तक आत्मा की साधना अपूर्ण है।तब उन्होंने मौन रह कर तप किया। भगवान महावीर ने दीक्षा लेने के बाद साढ़े बारह वर्ष तक तप साधना की और कर्मों के बंधन को तोड़ कर केवल ज्ञान प्राप्त किया। बुधवार से मुनि भद्रकंर विजय की ३९ वीं पुण्य तिथि कार्यक्रम शुरू होंगे। इस दौरान तीन दिन तक भक्ति महोत्सव होगा। बुधवार को सुबह ९ बजे गौतम स्वामी की भावयात्रा होगी।
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