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सुखी रहना है तो अपनी इच्छाओं को थोड़ा कम करो : अचल मुनि

  • Writer: Jain News Views
    Jain News Views
  • Aug 7, 2019
  • 2 min read

पंजाब - लुधियाना :

शिवपुरी जैन स्थानक में चातुर्मास के लिए विराजमान ओजस्वी वक्ता गुरुदेव अचल मुनि म. ठाणे-5 ने बुधवार की सभा में आए श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए कभी-2 के विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा कभी-कभी इच्छाओं को कम भी करें। इच्छाएं कम करने से आपके दिन में चैन मिल जाएगा और रात को नींद आ जाएगी। भगवान महावीर ने कभी पैसा कमाने की मनाही नहीं की, बल्कि जरूरत से ज्यादा रखने की मनाही की है। ठीक है इच्छाएं छूट नहीं सकती, इच्छाएं तो रहेंगी और इन्हें छोड़ने के लिए आपसे कहा भी नहीं जा रहा। श्रावक लोग 12 व्रत ग्रहण करते है। ये क्यों? क्योंकि हमारी इच्छाएं सीमित हो जाएं। अरे, सरकार भी 58 वर्ष की आयु में रिटायर कर देती है वो क्यों? क्योंकि वो भी हमें संदेश देते है कि आप अब धर्म ध्यान में अपने मन को लगा लो। दुकान फैक्टरी घर का मोह-ममता घटा लो। गलत कार्यो से कमाई न करे। ये नहीं कि जहां से भी आए जैसे भी आए पैसा आना चाहिए। इच्छा, लोभ, लालच, उनका कोई अंत नहीं है। आज हर आदमी दूसरे जैसा होना चाहता है, पर आप अपने आप में राजी चाहिए। गुरु ने कहा कि सुखी रहना है तो अपनी नजर किसी हवेली पर नहीं, बल्कि गरीब की झोंपड़ी पर रखिए। झोंपड़ी वाला अपनी नजर फुटपाथ पर रखे और फुटपाथ वाला अंधे-लगड़े पर। अपने से छोटे पर नजर रखोगे तो बडे़ सुख की घड़ियां कितनी जल्दी बीत जाती है, जबकि दुख की रातें काटे नहीं कटती। पत्नी के संग रात कब गुजर जाती है। पता नहीं चलता और मुर्दे के संग रात गुजारना पडे़ तो? श्री अतिशय मुनि म. ने कहा कि ईष्र्या से प्रसन्नता में घुण लगता है। सभी ईष्र्या के नुकसान जानते है, परंतु फिर भी लोग करते है। ईष्र्या एक ऐसा गड्ढा, जिसमें आज सभी गिरते जा रहे हैं। झगडे़ के पीछे सामने वाला कारण हो सकता है, पर ईष्र्या में तो सामने वाला कुछ नहीं कहता। दूसरे को बढ़ते देख ईष्र्या पैदा होती है। ईष्र्या बिना धुएं की आग है जो अंदर ही अंदर जलती रहती है। सबसे ज्यादा ईष्र्या तीन व्यक्तियों में होती है, नारी में, व्यापारी में, धर्म अधिकारी में।

 
 
 

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