top of page
Search

सुखमय संसार कड़वा और छोडऩे जैसा



तामिलनाडु - कोयम्बतूर - ईरोड :-

जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि दुनिया अर्थ व काम को सुख मानती है। परंतु जब जीवन में जब धर्म आता है तब अर्थ व काम गौण हो जाते हैं और धर्म व मोक्ष मुख्य हो जाते हैं। आचार्य अक्षय तृतीया के उपलक्ष्य में जैन भवन में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। धर्मी का तन संसार में होता है मन मोक्ष में होता है उसका जीवन का कार्य संसार का होता है लेकिन लक्ष्य मोक्ष होता है। नीम का पत्ता कड़वा व सागर का पानी खारा होता है उसी प्रकार संसार हर समय दुखमय व दुखदायी हेोता है। दैविक सुखों के भोग व राजा या चक्रवर्ती के पद भी सच्चे धर्मी की नजर में दुखदायी है। दुखमय संसार सभी को कड़वा लगता है लेकिन ज्ञानी व धर्मी को सुखमय संसार में कड़वा व छोडऩे जैसा नजर आता है। मौज मजा क्षण मात्र का है लेकिन उससे होने वाला पाप का बंध आत्मा को अनंत दुखों का भागी बनाता है।

उन्होंने कहा कि रसोई की आग प्राणघातक नहीं होती लेकिन नगर में लगी आग भयावह रूप ले लेती है। उसमें फंसा व्यक्ति इससे मुक्त होने का प्रयास करता रहता है इसी प्रकार इसी प्रकार संसार भी दावानल है जो ज्ञानी है वह इससे मुक्त होने के प्रयास में लग जाता है। उन्होंने कहा कि मुक्ति की चाह में जिसे मोक्ष के सुखों का सच्चा ज्ञान होता है वह दुख के समय भी दीन नहीं बनता। मोक्ष के लिए वैराग्य जरुरी है। म़ृत्यु का ज्ञान होने पर वैराग्य सुलभ बन जाता है। शरीर कितना ही स्वस्थ हो लेकिन उसका स्वभाव गलना है। एक दिन वह रोग व वृद्धावस्था को प्राप्त करता है। जब तक स्वस्थ है धर्म की अराधना करनी चाहिए। अवसर समाप्त होने के बाद पश्चाताप रह जाता है। मंगलवार को दोपहर बाद तीन बजे प्रवचन होंगे। बुधवार को पुन: सुबह ९ बजे प्रवचन होंगे।

Recent Posts

See All

4 Digambar Diksha at Hiran Magri Sector - Udaipur

उदयपुर - राजस्थान आदिनाथ दिगम्बर चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा 15 अगस्त को आचार्य वैराग्यनंदी व आचार्य सुंदर सागर महाराज के सानिध्य में हिरन मगरी सेक्टर 11 स्थित संभवनाथ कॉम्पलेक्स भव्य जेनेश्वरी दीक्षा समार

bottom of page