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श्रुतपंचमी ज्ञान महामहोत्सव में 2000 वर्ष प्राचीन शास्त्रों की महापूजा हुई

Updated: Jun 8, 2019


आयोजन में बड़ी संख्या में उपस्थिति श्रद्धालु। इनसेट में: सभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री विमल सागर।

दमोह - मध्य प्रदेश

आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनिश्री विमल सागर, मुनिश्री अनंत सागर, मुनि श्री धर्म सागर, मुनिश्री अचल सागर, मुनि श्री भाव सागर महाराज के सानिध्य में श्री दिगंबर जैन नन्हे मंदिर में शुक्रवार को श्रुतपंचमी ज्ञान महामहोत्सव मनाया गया। जिसमें 2000 वर्ष प्राचीन शास्त्रों की महापूजा हुई।

प्रातः देव, शास्त्र, गुरु की शोभायात्रा निकाली गई फिर श्रीजी का अभिषेक हुआ श्रुतस्कंध का अभिषेक दमोह के इतिहास में प्रथम बार हुआ। बड़ी संख्या में महिलाएं सिर पर शास्त्र रखकर शोभायात्रा में चल रही थी। बाद में शास्त्र अर्पण भी किया गया। पुरुषों ने भी शास्त्र अर्पण किया। षटखंडागम, जयधवला, धवला, महाबंध आदि ग्रंथो की महापूजन हुई। शास्त्र लकी ड्रा योजना का ड्रा निकाला गया। जिसमें प्रथम द्वितीय तृतीय एवं सांत्वना पुरस्कार का चयन हुआ। पीतल की धातु में 24 वाई 36 साइज में श्रुतस्कंध एवं आचार्य श्रीविद्यासागर जी महाराज के चित्र का विमोचन किया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री विमलसागर जी ने कहा कि यह श्रुत की परंपरा श्री आदिनाथ जी के समय से ज्ञान की धारा के रूप में निरंतर चल रही है। आचार्यो ने सोचा यदि ग्रंथों को लिपिबद्ध नहीं कराएंगे तो यह ज्ञान समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा था श्रुत देवता जयवंत हो। उन्होंने षटखंडागम ग्रंथ का अध्ययन करवाया था। जब ग्रंथों की लेखन की पूर्णता हुई तो उन मुनिराजों और श्रुत की पूजा की गई। हमें भी सौभाग्य प्राप्त हुआ कि गुरुदेव के द्वारा दीक्षा मिली और उसके बाद गुरुदेव के द्वारा षटखंडागम की सातवीं पुस्तक को पढ़ने और सुनने का सौभाग्य मिला। गुरुजी ने कहा था कि यह महान ग्रंथ है इसको सुनने से भी असंख्यात गुनी कर्मो की निर्जरा में कारण है। हाथ जोड़कर विनय के साथ सुनते जाओ। कालांतर में सब कुछ आ जाता है। बच्चे से लेकर बूढ़े तक सभी णमोकार मंत्र पढ़ते हैं। यह षटखंडागम ग्रंथ में मंगला चरण के रूप में है णमोकार मंत्र। मुनि श्री ने कहा कि यह मंगलाचरण अधूरा नहीं है पूर्ण है। ओंमकार ध्वनि में 11अंग 14 पूर्व द्वादशांग गर्भित होता है। धवला ग्रंथ में आया है कि दुनिया में यदि कोई संपदा है तो वह है गाय और दूसरा अर्थ है इस दुनिया में यदि कोई अद्वितीय संपदा है तो वह है जिनवाणी। चारो अनुयोगों को मेरा नमस्कार हो। जो इनका पान करता है उसकी सम्यक बुद्धि चलती है। जिसको जन्म के समय णमोकार मंत्र सुनने मिल जाए उसका जीवन सफल हो जाता है। जिसको अंत समय णमोकार मंत्र सुनने मिल जाए उसके कई भव सफल हो जाते हैं। पंचायत कमेटी और सकल दिगंबर जैन समाज का सहयोग रहा। द्रव्य अर्पण करने का सौभाग्य महिला मंडल पलंदी जैन मंदिर को प्राप्त हुआ।

घर में एक स्थान जिनवाणी के लिए होना चाहिए

इस जिनवाणी की पूजा भक्ति, विनय देव और गुरु की तरह करना चाहिए। देव शास्त्र गुरु की विनय से तप होता है। जिनवाणी की सुरक्षा का दायित्व आपके और हमारे ऊपर है। घर में एक स्थान जिनवाणी के लिए होना चाहिए आप चाहे तो रजत, स्वर्ण, ताम्रपत्र, पीतल आदि धातु पर भी जिनवाणी को उत्क्रीण करवा सकते हैं। यह ताम्रपत्र ग्रंथ मंदिर में विराजमान करवाएं जिससे हजारों वर्ष तक सुरक्षित रह सकें। यह ताम्रपत्र पंचम काल के अंत तक सुरक्षित रहेंगे। प्रत्येक मंदिर में ग्रंथालय होना चाहिए। जिनको सुनाई भी नहीं देता है लेकिन शास्त्र सभा में बैठते हैं तो वह कहते हैं कानो में कुछ गुंजायमान होता है। उससे मुझे संतोष प्राप्त होता है।

पूजन अभिषेक के बाद शास्त्रों की सफाई की और यथा स्थान पर रखा

भारतीय जैन मिलन क्षेत्र क्रमांक 10 के अंतर्गत जैन मिलन वरिष्ठ शाखा द्वारा श्रृत पंचमी के पावन अवसर पर दिगंबर जैन मदिर जबलपुर नाका में कार सेवा की गई। शाखा के पदाधिकारी एवं सदस्य प्रातः कालीन बेला में जबलपुर मंदिर पहुंचे जहां उन्होंने भगवान पार्श्वनाथ का महा मस्तकाभिषेक किया एवं शांतिधारा की। पूजन अभिषेक के बाद सदस्यों द्वारा मंदिर में विद्यमान शास्त्रों की पूरी विनय पूर्वक सफाई की तथा उन्हें यथा स्थान रखा। कार सेवा के द्वारा मंदिर की सफाई कार्यक्रम के बाद मासिक मिलन सभा का आयोजन किया गया।

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