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संसार के प्रति आसक्ति ही बार-बार जन्म-मरण का कारण है - साध्वी सुप्रसन्नाश्रीजी

  • Writer: Jain News Views
    Jain News Views
  • Jul 23, 2019
  • 2 min read

मध्य प्रदेश के मंदसौर शहर की चौधरी काॅलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में प्रवचन देतीं साध्वीजी।


मानव जीवन श्रेष्ठ है। विषय वासना, घर-परिवार, गाड़ी-बंगला की आसक्ति में ही जीवन समाप्त नहीं होगा और जब तक मानव देवगति या संसार के प्रति आसक्ति का भाव नहीं रखेगा तब तक मोक्ष में नहीं जा सकता। आसक्ति का त्याग ही मानव के मोक्ष का मार्ग की ओर अग्रसर करता है। यह बात साध्वी अनंतगुणाश्रीजी मसा की पावन निश्रा में आयोजित धर्मसभा में साध्वी सुप्रसन्नाश्रीजी मसा ने चौधरी काॅलोनी स्थित रूपचांद आराधना भवन में कही। उन्होंने स्वर्ग व नरक के जीवों का वर्णन करते हुए बताया कि स्वर्ग के देवता भी सुखों के प्रति आसक्ति रखते हैं। वे जिनवाणी तो सुन सकते हैं लेकिन आचरण में नहीं ला सकते हैं। सुख के प्रति आसक्ति के कारण स्वर्ग के देवता वनस्पति काया या पृथ्वीकाया के जीवों में जन्म लेते हैं। इसलिए होता है कि स्वर्ग में भी देवों की पदार्थों एवं आभूषणों के प्रति मोह आसक्ति कम नहीं होती है। इसी कारण आयुष पूर्ण करने के बाद ऐसी गति मिलती है। यदि मानव को ऐसी गति से बचना है तो आसक्ति को छोड़ें, यदि मानव भव मिला है तो धर्म से जुड़ें। परमात्मा से नाता जोड़ाे। संसार में रहते हुए भी यदि आप विषय वासना, वैभव से दूर रहोगे तो मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर हो जाओगे। जीवन में यदि अहंकार छोड़ दिया व पश्चाताप के भव को अपना लिया ताे मानो जीवन सफल है।

ज्ञानी पुरुष चमत्कार में नहीं, जप-तप में विश्वास करते हैं - आकांक्षा मसा

आजकल संसार में चमत्कार दिखाने वाले साधु-संतों की पूछपरख ज्यादा होती है। जो भी चमत्कार दिखाते हैं उस पर श्रद्धालु आंख मूंदकर भरोसा कर लेते हैं। जैन धर्म चमत्कार में नहीं, ज्ञान, जप-तप में विश्वास करता है संसार में जो भी ज्ञानी पुरुष हैं, वे चमत्कार नहीं दिखाते हैं। वे जप-तप कर आत्म कल्याण का प्रयास करते हैं। मानव को चाहिए कि चमत्कार में नहीं जप में विश्वास रखें। यह बात साध्वी अाकांक्षाजी मसा ने शास्त्री काॅलोनी स्थित जैन दिवाकर स्वाध्याय भवन में कही। उन्होंने कहा कि प्रभु महावीर को चंडकोशिका सर्प व संगम देव ने उनके केवल ज्ञान के पूर्व वन में ध्यान करते हुए बहुत वेदना थी। प्रभु महावीर जो कई लब्धियों के स्वामी थे। वे चंडकोशिक व संगम को दंडित कर सकते थे लेकिन प्रभु ने ऐसा नही किया। ज्ञानी पुरूष अपनी लब्धियों का उपयोग चमत्कार दिखाने के लिए नहीं करते हैं। जैन शास्त्रों के अनुसार पंचम आरे में चमत्कार दिखाने वाले की ख्याति जरूर बहेगी लेकिन मोक्ष की ओर प्रवत्त नहीं हो जाएंगे। शांखमुनिराज जब हस्तिनापुर की ओर विहार कर रहे थे। उस दौरान एक उच्च कुलीन कुल के बालक ने मुनिराज को पथरीले एवं कांटों वाला रास्ता बताया। मुनिराज को जब उस मार्ग पर भी कोई पीड़ा नहीं हुई तो वह बालक उनसे बहुत प्रभावित हुआ तथा मुनिराज से दीक्षा ले ली।

 
 
 

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