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समता भाव की श्रेष्ठ आराधना है सामयिक धर्म

  • Writer: Jain News Views
    Jain News Views
  • May 4, 2019
  • 2 min read


तमिलनाडु - कोयंबटूर - ईरोड :-

गृहस्थ जीवन में कदम-कदम पर अनेक जीवों की हिंसा चलती रहती है। संपूर्ण जीव हिंसा का त्याग केवल साधु जीवन में ही है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए संपूर्ण हिंसा का त्याग, साधु जीवन का अनुसरण करने योग्य सामायिक और पौषध की आराधना में ही है। समता भाव की आराधना से ही यह संभव है। यह बात आचार्य रत्नसेन सूरीश्वर ने शुक्रवार को यहां जैन भवन में धर्मसभा में आदर्श सामयिक के मौके पर श्रावकों को कही। उन्होंने कहा कि योग्य शास्त्र गं्रथ में हेमचंद सूरी के कथनों का उदाहरण देते हुए बताया कि हेमचंद ने श्रावक को तपे हुए लोहे के गोले के समान बताया। जिस प्रकार यह गोला जहां भी जाएगा,अपनी गर्मी से आसपास की सभी वस्तुओं को जला देगा। उसी प्रकार श्रावक भी अपने जीवन निर्वाह में जहां भी जाता है इस दौरान अनेक जीवों की हिंसा होती रहती है। संपूर्ण हिंसा का त्याग सामयिक पौषध धर्म की आराधना से ही होता है। उन्होंने कहा कि राग-द्वेष से दूर समता में स्थिर रहना ही सच्ची सामयिक है। मन, वचन काया की शक्ति अल्प है। चलने फिरने, बोलने में अंतत: आदमी थक कर विश्राम चाहता है किंतु मन २४ घंटे सक्रिय रहता है इसलिए मन पर काबू पाना कठिन होता है। सुख की चाह व दुख का द्वेष के बंधन तोडऩे वाला ही मोक्ष को प्राप्त करता है। वही व्यक्ति परम समता में लीन है। उन्होंने कहा कि इंद्र व देवताओं की पूजा के लिए बहुमूल्य वस्त्रों का उपयोग किया जाता है जबकि सामयिक सूती सफेद कपड़े ही पर्याप्त होते हैं। उन्होंने कहा कि सामयिक में हिंसा नहीं हो इसका ख्याल जरुरी हैै। शनिवार को भी सुबह नौ बजे प्रवचन व दोपहर २.४५ बजे व्याख्यान होंगे।

 
 
 

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