
कोयम्बत्तूर. आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि रसनेन्द्रिय तप का सर्वश्रेष्ठ तप आयंबिल तप है। आयंबिल तप में भोजन के हर प्रकार के स्वाद का त्याग होता है। दूध, दही, घी, तेल, गुड़ व तले हुए फलों, मेवों व वनस्पति का त्याग होता है।
आचार्य मंगलवार को यहां आरएस पुरम स्थित राजस्थानी भवन में चल रहे चातुर्मास कार्यक्रम के तहत रामचंद्र सूरीश्वर की २८ वीं स्वर्गारोहण की तिथि को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आयंबिल में न केवल स्वादिष्ट भोजन का ही त्याग होता है वरन सादे रसहीन भोजन का ग्रहण करना भी होता है। इसलिए यह उपवास से भी अधिक कठिन है। इस प्रकार दोनों ओर से रसेन्द्रिय पर प्रहार होता है। उपवास निरंतर नहीं किया जा सकता लेकिन आयंबिल तब जीवनपर्यंत किया जा सकता है। आयंबिल तप में २४ घंटे में एक बार सादा भोजन किया जाता है। इस कारण इसे करने वाले तपस्वी जीवन पर स्फूर्ति का अनुभव करते है।
उन्होंने कहा कि रसा रोगस्य कारणं। मीठा, मसालेदार, चटपटे, दही-वडा, नमकीन व बाजार में बिकने वाले भोजन के खाने से गैस, ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, अजीर्ण, कैंसर व कई घातक रोग हो जाते हैं। महोत्सव के दूसरे दिन गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। गुरु भक्ति गीत के साथ मुनि शालिभद्र विजय व स्थूलभद्र विजय ने रामचंद्र सूरीश्वर के गुणानुवाद करते हुए जीवन प्रसंग सुनाए। गुणानुवाद सभा बुधवार को भी होगी।
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