कोयंबतूर, तमिल नाडु
ईरोड. आचार्य रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि चार गति के परिभ्रमण का अंत कर ज्ञानी भगवंतों ने मात्र मनुष्य जन्म को ही श्रेष्ठ बताया। नारक, पशु व देव जन्म द्वारा धर्म की आराधना नहीं की जा सकती। मनुष्य जन्म पाना आसान नहीं है। मनुष्य जन्म पाने के लिए सतत कामना करनी होती है।
आचार्य शनिवार को ईरोड स्थित जैन भवन में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दुनिया पैसे को सर्वाधिक बलवान मानती है। पैसों से चश्मा मिल सकता है, आंखे नहीं। पैसों से जूते मिल सकते हैं पैर नहीं। कपड़े मिल सकते हैं लेकिन शरीर पैसों से नहीं मिल सकता। इन सब की प्राप्ति पुण्य बिना नहीं होती। मनुष्य जीवन पुण्य की कीमत चुकाए बिना नहीं मिल सकता।
उन्होंने कहा कि केवल मनुष्य जन्म पा लेना ही काफी नहीं है। जैसे विद्यार्थी वर्ष भर विद्यालय जाए लेकिन ज्ञान नहीं पाए तो वह व्यर्थ है। वैसे ही मनुष्य जीवन पाकर उसे सत्कार्यों में लगाना ही उपयोगी है। संसार के सुखों को प्राप्त करने में जीवन गंवाना व्यर्थ है। अंधा व्यक्ति खड्डे में गिर जाए वह दया का पात्र बनता है लेकिन आंखों वाला गिर जाए तो वह सजा का पात्र है। अनुकूलता को पाकर भी जो धर्म की आराधना नहीं करता उस पर कुदरत भी दया नहीं करती।
उन्होंंने कहा कि मनुष्य जन्म पाकर हमें आत्मा की चिंता करनी है। आत्मा तो पूरी जिंदगी याद नहीं आती। केवल शरीर की स्वस्थता का ध्यान रखते हैं। शरीर के लिए त्याग नहीं होता आत्मा के लिए त्याग किया जाए वह श्रेष्ठ है। शरीर के दाग रोग के लिए सब कुछ करते हैं लेकिन आत्मा पर कर्मरूपी रोगों पर कोई ध्यान नहीं देता। जब हाथ में समय था तो समझ नहीं थी अब समझ आई तो समय नहीं है। प्राप्त हुए समय में ही धर्म आराधना कर लेनी चाहिए। अन्य को प्राप्त हुए धन, संपत्ति को देख कर उसे पाने की कामना होती है उसी प्रकार किसी के त्याग को देख कर उसके अनुसरण की कामना होनी चाहिए। प्रवचन के बाद साधु-साध्वी के दीक्षा दिन व बड़ी दीक्षा के अनुमोदन के लिए संघ पूजन किया गया।
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