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परमात्मा ही आत्मा के सच्चे संबंधी : आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर

  • Writer: Jain News Views
    Jain News Views
  • Jul 22, 2019
  • 2 min read

Updated: Jul 23, 2019


कोयम्बत्तूर.

जन्म से ही व्यक्ति जीवन भर नए-नए संबंधों को बांधने का कार्य करता रहता है। जिसके सगे संबंधी ज्यादा होते हैं, उसे बड़ा कहा जाने लगता है। यह सभी संबंध एक जन्म के हैं, अगले जन्म में यह कोई साथ नहीं होते। आत्मा के सच्चे संबंधी जन्मों जन्मों तक साथ देने वाले होते हैं। यह शक्ति सिर्फ परमात्मा के पास है। वह ही सच्चे संबंधी हैं। यह बात आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने सोमवार को बहुफणा पाश्र्वनाथ जैन ट्रस्ट की ओर से राजस्थानी संघ भवन में चल रहे चातुर्मास कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि परमात्मा में वह शक्ति है कि जो उसकी शरण में जाता है परमात्मा उसे अपने समान बना लेते हैं। उनकी शरण यानि उनकी आज्ञा स्वीकार करना है। आचार्य ने कहा कि बेटा वही माना जाता है जो न सिर्फ माता-पिता की सेवा करे बल्कि उनकी आज्ञा का पालन भी करे। परमात्मा के साथ उसी का संबंध जुड़ता है जो उसकी पूजा और भक्ति के साथ आज्ञा का भी पालन करे। आज्ञा पालन में सम्मान नहीं है तो पूजा भक्ति से जीवन की प्रगति नहीं हो सकती। परमात्मा का सच्चा उपकार यही है कि उन्होंने ज्ञान के बल से आत्म उद्धार का सच्चा मार्ग बताया। मार्ग का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है। उन्होंने कहा कि विज्ञान से केवल जानकारी का ज्ञान बढ़ा है वास्तव में वह पूरा ज्ञान नहीं है। भगवंत की आज्ञा का पालन मोक्ष का कारण है आज्ञा नहीं मानना संसार वृद्धि का कारण है।

जिन आत्माओं ने स्वार्थ से वशीभूत होकर आज्ञा नहीं मानी, उनका पतन हुआ। परमात्मा की आज्ञा नहीं मानना ही आत्मा का परिभ्रमण का मुख्य कारण है। जब तक वस्तु की सच्ची पहचान नहीं होती उस वस्तु के प्रति दिल में सद्भाव पैदा नहीं हो पाता। परमात्मा की आज्ञा के प्रति सद्भाव पैदा करने के लिए उसका ज्ञान होना जरुरी है।

 
 
 

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