top of page
Search

संतों के स्वागत में सजा बागीदौरा अगवानी में उमड़ा पूरा जैन समाज

  • Writer: Jain News Views
    Jain News Views
  • May 22, 2019
  • 2 min read

बागीदौरा| चतुर्थ पट्टाधीश संयम भूषण आचार्य सुनील सागरजी का ससंघ मंगलवार को बागीदौरा में मंगल प्रवेश हुआ। जैन समाज ने वड़लीपाड़ा मोड़ पर संतों की अगवानी कर शोभायात्रा के रूप में जैन मंदिर लाए। संतों का गाजे बाजे के साथ नगर भ्रमण हुआ। आचार्य ससंघ के स्वागत में पूरा बागीदौरा कस्बा तोरण द्वार से सजाया गया। जगह जगह श्रद्धालुओं ने आचार्य सुनील सागरजी के पाद प्रक्षालन किए। आचार्य ससंघ ने मंदिर में मूलनायक शांतिनाथ भगवान के दर्शन किए। आचार्य विद्यासागर संयम भवन में बोली से आचार्य के पाद प्रक्षालन का लाभ सवोत हितेश नवीन परिवार ने लिया। दोसी महेंद्र कुमार पूनमचन्द परिवार ने शास्त्र भेंट किए। दोसी अभय कुमार रतनलाल परिवार ने पूजन अर्घ्य अर्पित कर पुण्यार्जन किया। शुरू में धर्मेंद्र जैन ने मंगलाचरण और दर्श सवोत ने गीत प्रस्तुत किया। संचालन विनोद दोसी ने किया। बागीदौरा, घाटोल, भीलूड़ा समाज ने चातुर्मास व सुरेश सिंघवी, वीरोदय तीर्थ क्षेत्र अध्यक्ष मोहनलाल पिंडारमिया, खुशपाल शाह सहित भक्तजनों ने श्रीफल भेंट किए।

मौन रहना भी एक श्रेष्ठ साधना - आचार्य

आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति को जीवन जीने के तरीके बदलने चाहिए, न कि इरादे। इरादे वहीं रखों और तरीका बदल जीवन को संयमित बनाते हुए सकारात्मक दिशा की ओर ले जाए। मौन रहना भी एक श्रेष्ठ साधना है। इससे विवादों से बचा जा सकता है। व्यक्ति को मान सम्मान मिलने पर अभिमान नहीं करना चाहिए। मान-अभिमान हो तो फरिश्तों को शैतान बना देता हैं और विनम्रता, निर्मलता साधारण व्यक्ति को फरिश्ता बना देती हैं। व्यक्ति का जीवन साधना व संयम से भरा होना चाहिए। आचार्यश्री ने वर्तमान में पैकेज्ड फूड के चलन पर कहा कि खान-पान की अशुद्धता होने से खानदान अशुद्ध हो रहा है। संत के समागम से व्यक्ति के आचरण में परिवर्तन आता है। जिस प्रकार पक्षी अपने बच्चों को तिनकों से घौंसला बनाने की सीख देता है, उसी प्रकार मनुष्य को भी अपनी भावी पीढ़ियों को भविष्य निर्माण की सीख देनी चाहिए। इसी संदर्भ में बच्चों को संस्कारित करने पर बल दिया और कहा कि युवा पीढ़ी को धर्म से जोड़े। संत धर्म के साथ श्रावक धर्म का पालन करना भी कठिन है। जैनागम में श्रावकों को मूलगुणों का पालन करना चाहिए। श्रावकों को इससे पूर्व मुनि सुय|सागरजी अंग्रेजी में प्रवचन देते हुए कहा कि चतुर्थकाल के संतों जैसा पंचमकाल में भी वैसा ही आचरण आचार्यश्री का है। शांत और मौन रहना ही सबसे बड़ा गुण हैं। वहीं मुनि शुभमसागरजी ने तत्वज्ञान पर प्रवचन दिए।

 
 
 

Recent Posts

See All
4 Digambar Diksha at Hiran Magri Sector - Udaipur

उदयपुर - राजस्थान आदिनाथ दिगम्बर चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा 15 अगस्त को आचार्य वैराग्यनंदी व आचार्य सुंदर सागर महाराज के सानिध्य में हिरन...

 
 
 

Коментари

Оценено с 0 от 5 звезди.
Все още няма оценки

Добавяне на отзив

3 Simple steps to Get interesting Jain Content:

 

1.  Save +91 8286 38 3333 as JainNewsViews

2.  Whatsapp your Name, City and Panth (Derawasi, Sthanakwasi, Digambar, Terapanthi, Non-Jain)

 

3. Share with your family & friends to be a sat-Nimitt

  • Instagram
  • Facebook
  • Twitter
  • YouTube

Subscribe to Our Newsletter

bottom of page