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एक बाल टूटने भर से कराह जाते हैं हम और ये जैन संत अपने हाथों से उखाड़ते हैं सिर, दाढ़ी-मूंछ के बाल

  • Writer: Jain News Views
    Jain News Views
  • Apr 26, 2019
  • 3 min read


डूंगरपुर (राजस्थान)। भगवान महावीर त्याग, समर्पण और सदमार्ग का दूसरा नाम। जैन धर्म में साधुत्व यानी कठिन साधना का पथ। यहीं से संत का संतत्व निखरकर कुंदन बनता है। इसी कठिन साधना का एक पथ है केशलोंच। एक बाल टूटते ही हम कराह उठते हैं और बाल तोड़ बीमार कर देता है। वहीं, जैन संत अपने हाथों से न सिर्फ सिर के बाल, अपितु मूंछ और दाढ़ी के बाल भी एक-एक पल भर में तोड़ देते हैं। ऐसा नहीं कि एक बार की विधि हैं। साल में तीन से चार बार केशलोंच की परम्परा होती है।


केशलोंच जैन धर्म की कठिन तपस्या का अनिवार्य हिस्सा

जैन संत अपने हाथों से घास फूस की तरह सिर, दाढ़ी व मूंछ के बाल को आसानी से उखाड़ देते हैं। यह पल देखते ही कई श्रद्धालु भाव विभोर हो जाते है। जैन साधु की कठिन तपस्या में केशलोंच भी मूलगुण में शामिल है। बताते हैं कि इससे जैन साधु में शरीर की सुंदरता का मोह खत्म हो जाता है। जैन साधु जब केशलोंच करते है तो आत्मा की सुंदरता कई गुना बढ़ जाती है।अपने आत्म सौंदर्य बढ़ाने के लिए कठिन साधना करते हैं। इससे संयम का पालन भी होता है।


कंडे की राख का होता है उपयोग जैन साधु सिर, दाढ़ी व मूंछ के बालों को निकालते समय कंडे की राख का उपयोग करते हैं ताकि खून निकलने पर रोग न फैले। पसीने के दौरान हाथ फिसल न जाए। केशलोंच करने के दौरान बालों को हाथों से खींचकर निकाला जाता है। अपने हाथों से बालों को उखाड़कर जैन साधु इस बात का परिचय देते है कि जैन धर्म कहने का नहीं सहने का धर्म है।


साधना शक्ति का परीक्षण है केशलोंच श्री महावीर भगवान कहते हैं कि हाथों से बालों को उखाडऩा शरीर को कष्ट देना नहीं है। बल्कि शरीर की उत्कृष्ट साधना शक्ति का परीक्षण है। इससे कर्मो की निर्जरा होती है। केशलोंच तपस्या का अनिवार्य हिस्सा है। -मुनि पूज्य सागर महाराज


किसी भी मौसम में खड़े-खड़े ही करते हैं भोजन

बालों को उखाडऩे से बालों में होने वाले जीवों का जो घात हुआ है। उन्हें कष्ट हुआ है उसका प्रायश्चित भी संत करते हैं। आचार्य, उपाध्याय व साधु केशलोंच के दिन उपवास रहते हैं। इस दिन अन्न व जल का ग्रहण नहीं करते हैं। कई जैन साधु कैसा भी मौसम भी पडग़ाहन के बाद खड़े खड़े ही भोजन करते है। कई जैन साधु केशलोंच के दिन मौन भी रखते हैं।

दो से चार माह में एक बार करते है केशलोंच, तपस्या का अनि वार्य हिस्सा

दिगंबर जैन संत एक केशलोंच करने के बाद दूसरा केशलोंच दो माह व अधि कतम चार माह में करते हैं। यह इनकी तपस्या का अनिवार्य हिस्सा है। दीक्षा लेने के बाद हर साधु को इस कठिन तपस्या से गुजरना होता है। केशलोंच करने के पीछे एक कारण यह भी है कि साधु किसी पर अवलंबित नहीं होते है। वह स्वावलंबी होते है। साधु शरीर की सुंदरता को नष्ट करने और अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए केशलोंच करते है। लेकिन जब यह केशलोंच करते है तो इनके चेहरे पर मुस्कुराहट देखने को मि लती है। वहीं दूसरी तरफ श्रद्धालुओं का चेहरा भाव वि भोर हो जाता है। बालों को उखाड़ते समय संत को उफ तक करने की इजाजत नहीं है। जैन संत का केशलोंच कार्यक्रम कई बार तो पहले से निर्धा रित होता है, लेकिन कई साधु आकस्मिक भी करते हैं। साधु संत के केशलोंच कार्यक्रम को देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं।


 
 
 

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