मध्यप्रदेश - भितरवार
जैन धर्म में कहते है कि आगम की चर्चा प्रवचन में जब तक नहीं की आती तब तक प्रवचन का कोई महत्व नहीं होता, क्योंकि आगम एक स्वाध्याय का मार्ग है ओर स्वाध्याय से ही कर्मो की निर्जरा होगी। यह बात सियाराम भवन में मंगलवार को आयोजित धर्मसभा में जैनमुनि आचार्य विवेक सागर महाराज ने श्रोताओं से कही।
उन्होंने कहा कि जैन धर्म में कहा जाता है कि 24 तीर्थंकर हुए, लेकिन एक से लेकर 23 तीर्थंकर का दुःख एक तरफ और 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का दुख एक तरफ है। कहने के लिए महावीर जैसा बनना कठिन है। जब तीर्थंकर भगवान मां की कोख में आते हैं, तब उनके पास तीन ज्ञान होते हैं। मती ज्ञान, श्रुति ज्ञान और अवधि ज्ञान। जब वो दीक्षा लेते हैं, तब उन्हें मन पर्याय ज्ञान होता है। वह साधना करके अपने कर्मो को काटकर तीर्थंकर भगवान केवल ज्ञान को प्राप्त करते हैं और प्रवचन देना शुरू करते हैं। महावीर को कर्मों की निर्जरा करने के लिए अनार्य क्षेत्र में विचरण के लिए जाना पड़ा। तब कहीं जाकर वह 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर बने। मुनिश्री ने कहा कि मुनष्य पर्याय बहुत दुर्लभ है, इस दुर्लभ पर्याय को पाकर वर्तमान की चकाचौंध और भौतिक विषयों में अपने जीवन को नष्ट नहीं करना चाहिए, बल्कि अहिंसा धर्म को सुरक्षित रखते हुए जीवन प्रकृति अनुसार व्यतीत करना चाहिए। यदि हम प्रकृति का संरक्षण नहीं करेंगे, तो धर्म का पालन करना संभव नहीं हो पाएगा। हमें अपने जीवन में प्राकृतिक संपदा जल, वनस्पति और वायु का संरक्षण करना चाहिए और पौधों का रोपण कर प्रकृति संवर्धन में योगदान देना चाहिए। इस अवसर पर मुनिश्री समर्पण सागर महाराज, छुल्लक मुनि दिव्य चरित्र सागर महाराज एवं ब्रह्मचारिणी सरिता देवी, हर्षिता देवी, अर्चिता देवी सहित जैन समुदाय व अग्रवाल समुदाय के लिए लोग उपस्थित रहे।
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