कोयम्बत्तूर. जैन आचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा कि श्रावक को जिनवाणी का श्रवण अवश्य करना चाहिए। जिनवाणी की पूजा से इसका श्रवण अधिक महत्वपूर्ण है। पूजा जरुरी है लेकिन जिनवाणी व जिनपूजन का प्रसंग एक साथ आ जाए तो जिनवाणी का श्रवण श्रेष्ठकारी है।
आचार्य गुरूवार को राजस्थानी संघ भवन में बहुफणा पाश्र्वनाथ जैन ट्रस्ट के तत्वावधान में आयोजित धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज के दौर में श्रावक जीवन से स्वाध्याय लगभग समाप्त हो गया है।
जबकि मोक्ष मार्ग को जानने के लिए जिनवाणी सक्षम माध्यम है। इसके नियमित श्रवण से जीवन में संवेग व वैराग्य भाव बढ़ता है। मोक्ष मार्ग की आराधना के लिए गुरू व देव दोनोंं जरुरी है। अर्थात देव की पूजा व गुरू से जिनवाणी का श्रवण जरुरी है। जिनवाणी का श्रद्धा भाव से नियमित श्रवण किया जाए तो लाभ मिलता है। आचार्य ने कहा कि जिनवाणी के नियमित श्रवण से सम्राट कुमार पाल बारह व्रत धारी श्रावक बन गए थे।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि एक कागज ऐसा होता है जिस पर कुछ गिरते ही सोख लेता है दूसरा प्लास्टिक कागज होता है उस पर कुछ भी गिरे वैसा ही पड़ा रहता है। इसी तरह श्रोता भी दो प्रकार के होते हैं । धर्म का श्रवण तो करते हैं लेकिन श्रवण उनके कानों को छूता है ह्रदय को नहीं।
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