जैन धर्म के प्रमुख ग्रंथ राज सागर अंगार देशना (रयणसार) को भविष्य में नई पीढ़ी के लिए संभालकर रखने के उद्देश्य से 350 किलो वजनी ताम्रपत्र पर लिखने का नया इतिहास रचा गया है। आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने मुनि आदित्य सागर के निर्देशन में इसे लिखा और मुनि सुब्रत सागर ने इस ग्रंथ का संकलन किया है। तीन फीट लंबा और 1.5 फीट चौड़ा ताम्रपत्र है। यह ग्रंथ राज भविष्य में जिन शासन की धरोहर साबित होगा। इस ग्रंथ का भव्य विमोचन गुरुदेव ससंघ के सानिध्य में गौरझामर में आयोजित पंच कल्याणक के समवशरण के समय विमोचन हुआ। इस ग्रंथराज को बुंदेलखंड की धर्म नगरी गणेश प्रसाद वर्णी की नगरी मोरा सागर (मप्र) में विराजमान किया जाएगा।
गुरु आस्था मंच के संरक्षक मनोज झांझरी ने बताया कि इस ग्रंथ राज का नाम जल्द ही गिनीज वर्ल्ड बुक में दर्ज कराया जाएगा। आचार्य विशुद्ध सागर ने बताया कि पूर्व काल में हमारे ग्रंथों की 6 महीने तक होली जलाई गई थी। वे कागज पर लिखे हुए थे। इस वजह से अब हम अपने ग्रंथों को सुरक्षित रखेंगे और हम जिन शासन की रक्षा करेंगे। रयणसार ग्रंथ को बनाने में भोपाल के गुरु भक्त रितेश का प्रमुख सहयोग रहा है।
ताम्रपत्र पर लिखा ग्रंथ और विशुद्ध सागर महाराज।
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