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जैन समाज... संसार का सुख समुद्र के पानी की तरह, कभी नहीं हो सकते तृप्त

  • Writer: Jain News Views
    Jain News Views
  • Jul 19, 2019
  • 1 min read

1. पहले वो जो ग्रेनाइट के पत्थर के समान होते हैं, जिन पर पानी गिरता है, तो वह उसे ग्रहण नहीं करता। ऊपर ही रह जाता है। इस तरह के श्रोता धर्म की बात को, अच्छी बात को सुनते तो हैं पर जीवन में उतारते नहीं हैं।

2. दूसरे स्पंज के समान होता है, जो अपने ऊपर पानी गिरने पर उसे ग्रहण तो करता है पर थोड़ा सा भी भार आए तो वह उस पानी को बाहर निकाल देता है। ये धर्म की बात को, अच्छी बात को सुनते भी हैं और थोड़ा जीवन में उतारते भी हैं पर थोड़ी सी विपरीत परिस्थिति आए या भार पड़े तो ग्रहण किया हुआ सब कुछ छोड़ देता है।

3. तीसरे श्रोता काली मिट्टी के समान होते हैं, जिस प्रकार काली मिट्टी पानी को ग्रहण कर सोख लेती है, उसी प्रकार ये तीसरे नंबर के श्रोता धर्म की बात को, अच्छी बात को जिनवाणी रूपी बारिश को ग्रहण करके अपने जीपन में उतार लेते हैं। ज्ञानीजन कहते हैं कि हमारे जीवन को सुगंधित सुखमय व शांतिमय बनाने के लिए काली मिट्टी के समान जिनवाणी रूपी बारिश को जीवन में उतारकर आचरण में लाना होगा।

 
 
 

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