राजस्थान - पाली :-
जैन समाज के धार्मिक इतिहास में विक्रम संवत 2076 की पहली नवपद ओली का आयोजन यादगार बन गया। 800 धर्मावलंबियों ने एक साथ सामूहिक रूप से एकासणा कर 9 दिन तक तप, त्याग तथा तपस्या से जुड़े कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी निभाई। शनिवार को सूर्यास्त से नवपद ओली यानी आयंबिल तप पूरा होने पर कालूजी बगीची में तपस्वियों का पारणा हुआ। इस दौरान बिना घी-तेल, नमक तथा मिर्च या मसाले से बना हुआ भोजन ग्रहण किया।
जैन संतों ने भी भक्तों का गोचरी का लाभ देते हुए श्रावक-श्राविकाओं को मंगल पाठ सुनाया। साथ ही सिद्धचक्र महापूजन भी हुआ। साल में नवपद ओली का आयोजन दो बार किया जाता है। पहला चैत्र तथा दूसरा आसोज महीने में। चैत्र महीने की नवपद ओली चैत्र शुक्ला षष्टमी से शुरू हुई। इस बार तपस्या के प्रति खासकर युवाओं में जोरदार उत्साह दिखाई दिया। 9 दिन तक चलने वाली इस तपस्या के दौरान होने वाले विभिन्न धार्मिक आयोजनों में शिरकत करने के साथ ही जैन बंधुओं ने सामूहिक रूप से रूखा-सूखा भोजन ग्रहण किया। पूरे 9 दिन तक यह तपस्वी गर्म पानी का ही सेवन करते रहे। नवपद ओली की प्रेरणा देश के प्रमुख जैन संत आचार्य विजयसुरिश्वर, शीलर| महाराज, मोहनलाल महाराज तथा साध्वी विश्वासपूर्णा से मिलने के बाद आचार्य विजय दर्शन र| सुरिश्वर की पावन निश्रा में यह आयोजन किया गया।
सामूहिक पारणा में जुटा समूचा जैन समाज, एक कण भी झूठा नहीं : इस आयोजन को सफल बनाने के लिए शनिवार सुबह से ही कालू जी बगीची में तेरापंथ, तपागच्छ, खतरगच्छ, स्थानकवासी तथा दिगंबर जैन समाज के बंधुओं की आवाजाही शुरू हाे गई। सामूहिक पारणा के दौरान युवक व युवतियों ने व्यवस्था बनाने में सहयोग दिया। सामूहिक पारणा में विशेषता यह रही कि थाली में एक कण भी झूठा नहीं छोड़ा गया। ऐसे धार्मिक आयोजन में झूठा छोड़ना महापाप समझा जाता है।
नवपद ओली यानी 9 दिन का एकासणा
जैन समाज में नवपद ओली का विशेष महत्व है, चैत्र महीने में होने वाले इस आयंबिल तप में 9 दिन एकासणा कर सामूहिक रूप से बिना घी-तेल का भोजन ग्रहण करते हैं।
कालूजी बगीची में 9 दिन आयोजन
इन 9 दिनों के दौरान तप, त्याग तथा तपस्या से जुड़े कई धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, अंतिम दिन सिद्धचक्र महापूजन हुआ। जैन संतों ने मांगलिक सुनाया।
पारणा के अवसर पर जैन प्रर्वतक सुकनमुनि भी पहुंचे
शनिवार को हुए पारणा कार्यक्रम के दौरान स्थानकवासी जैन समाज के प्रर्वतक सुकनमुनि भी अपने संत मंडल के साथ तपस्वियों को आशीर्वाद देने के लिए कालू जी बगीची में पहुंचे। यहां पर सभी 800 तपस्वियों को मंगलपाठ सुनाया।
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