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जैन धर्म में शनि का महत्व

  • Writer: Jain News Views
    Jain News Views
  • Jun 1, 2019
  • 2 min read

आचार्य भगवंत श्री यशोभद्र सूरीश्वरजी महाराज (डहेलावाला)

वर्तमान समय में लोग शनि ग्रह की पनौती के नाम से घबराते हैं। शनि देव की पनौती बैठती है, तब शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक सभी प्रकार की तकलीफ आती है। आदमी तकलीफ से ही डरता, क्योंकि आज सहनशीलता पूर्ण रूप से घटती जा रही है। सहनशीलता का अभाव व समझदारी की कमी की वजह से दु:ख आने व अन्य व्यक्ति के साथ दुश्मनी भी कर बैठता है।

सबसे पहले तो यह समझना जरूरी है कि दु:ख क्यों आता है? सभी संत-महात्माओं का एक ही जवाब है कि पूर्व जन्मों में जो कुछ भी जाने-अनजाने में पाप होता है, उसका फल दु:ख के रूप में ही प्राप्त होता है। दु:ख हमें इस दुनिया में कोई नहीं दे सकता, तो सुख देने की ताकत भी किसी में नहीं है।

सुख और दु:ख हमारे द्वारा किए गए अच्छे व बुरे कर्म का ही फल हैं, किसी भी ग्रह में न तो सुख देने की शक्ति है, न दु:ख देने का सामर्थ्य।

अब मुझे बात करनी है कि मान लो यदि आप ग्रह दशा के ऊपर श्रद्धा-विश्वास रखते हों तो यहां-वहां भटकने का छोड़कर अपने भगवान का जाप करें।

हमारे जैन में भी नवग्रहों के स्वामी बताए गए हैं।

रवि ग्रह के स्वामी तीर्थंकर पद्मप्रभुस्वामी भगवान, सोम ग्रह के स्वामी चन्द्रप्रभु स्वामी भगवान, मंगल ग्रह के स्वामी वासुपूज्य भगवान, बुध ग्रह के स्वामी शांतिनाथ भगवान, गुरु ग्रह के स्वामी आदिनाथ भगवान, शुक्र ग्रह के स्वामी सुविधिनाथ भगवान, शनि ग्रह के स्वामी मुनि सुब्रत स्वामी भगवान, राहु ग्रह के स्वामी नेमीनाथ भगवान व केतु ग्रह के स्वामी पार्श्वनाथ भगवान हैं। जिस ग्रह की दशा आपके जीवन में बाधा रूप में हैं, तो उस ग्रह के स्वामी प्रभु के नाम का जाप करो तो बाधा-शाता के रूप में परिवर्तित हो जाएगी।


शनि ग्रह त्याग का कारक है। जब गुरु ग्रह व शनि ग्रह का दृष्टियोग होता है, तो दीक्षा योग प्राप्त होता है। शनि ग्रह वैसे तो स्थिर ग्रह है जिसका फल लंबे समय के बाद मिलता है।

शनै:-शनै: चलति शनि इस कलयुग में शनि , राहु एवं मंगल ग्रह शुभ या अशुभ में अवश्य मिलता ही है। शनि ग्रह शुभ अंश पर होता है, तब व्यक्ति राजा बनता है। अत: शनि ग्रह की पनोती से बचने के लिए सबसे श्रेष्ठ उपाय भगवान का जाप है। सभी इस पनोती से मुक्त हो, सुखी हो।

 
 
 

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