मल्ल मंदिर रोड पर स्थित एसएस जैन सभा प्रागण में प्रवचन करते हुए महासाध्वी श्री समृद्धि जी महाराज ने बताया कि पापभीरुता जैन सन्यासियों का प्रमुख गुण है । उन्होंने बताया कि पापभीरु व्यक्ति से कभी पाप कर्म नहीं होता। यदि पापकर्म अज्ञानतावश कभी हो भी जाए तो वह उसका पश्चाताप अवश्य कर लेता है। पापभीरु व्यक्ति के पुण्य कर्म निरंतर बढ़ते रहते हैं।
उन्होंने बताया के जो व्यक्ति पापभीरु नहीं होता, वह हंस हंस कर पापकर्म करता है। महाराज श्री ने कहा कि जीवन में ऐसे मित्र बनाएं, जो हमारे अवगुणों पर हमेशा ध्यान दे और में सत्य के मार्ग पर लेकर जाए।
उन्होंने कहा कि पतन की ओर ले जाना वाला कभी मित्र नहीं होता। प्रवचन करते हुए महासाध्वी समृद्धि जी महाराज ने कहा कि हमें गुरुजनों, माता पिता एवं भाइयों को मित्र बनाना चाहिए जो कि दुख में भी हमेशा साथ देते हैं।
उन्होंने कहा कि गुरू जैसा अनमोल मित्र कोई नहीं होता, क्योंकि गुरु हमें गलत रास्ते पर जाने से रोकते है।
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