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दूसरों के दोष की जगह देखिए अपने ही दोष : सन्मति मुनि म. सा.


पंजाब - लुधियाना :

उप-प्रवर्तक श्रमण संघीय सलाहकार गुरुदेव विनय मुनि के शिष्य रत्न गुरुदेव सन्मति मुनि म. सा. ने जैन स्थानक रुपा मिस्त्री गली में बुधवार की चातुमार्सिक सभा में कहा कि यदि आपको निंदा करने की और लोगों के दोष देखने की आदत हो गई है तो आपको अपनी दृष्टि को थोड़ा सा घुमाना होगा। दृष्टि को मोड़ने पर आप दूसरों के दोष देखने की जगह अपने ही दोष देखिए। दूसरों की निंदा की जगह आप आत्मा निंदा करें और अपने अंदर झांक कर देखे कि आपके मन के भीतर क्या हो रहा है।


प्राचीन ग्रंथों में एक कहानी है कि एक शिष्य ने गुरु की सेवा करके एक वरदान प्राप्त किया। वरदान में उसे एक ऐसा शीशा प्राप्त हुआ जिसे दूसरे व्यक्ति के सामने करने पर उस व्यक्ति के मन का पूरा चित्र उसमें झलक उठता था। शिष्य को जैसे ही शीशा मिला उसने सबसे पहले अपने गुरु पर ही उसका प्रयोग किया तो देखा कि गुरु के मन में अहंकार दबा पड़ा है और वासना व लोभ के छोटे-2 कीटाणु कुल बुला रहे है। यह देखकर शिष्य का मन गुरु की सेवा से टूट गया है। इसके बाद वह हर किसी के सामने शीशा करता और उसके मन में छिपी सारी गंदगी देखकर दंग रह जाता। लेकिन कुछ दिनों बाद वह घबराते हुए गुरु के पास वापिस गया और बोला कि इस संसार में सभी के मन में वासना, अहंकार की गंदगी से भरी हुई है। यह बात सुन गुरु ने शिष्य के शीशा को उसकी ओर कर दिया। शिष्य शीशा देख कर दंग रह गया कि उसके मन में अहंकार के बडे़-2 कीड़े, कहीं वासना और कहीं लोभ के अजगर है। गुरुदेव ने कहा कि वत्स दूसरे के दोष देखने से पहले खुद के अंदर झांक कर अपने मन की गंदगी देखनी चाहिए।

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