देख-परख कर संगति करें : मुनि हितेशचन्द्र विजय
- Jain News Views
- Aug 8, 2019
- 2 min read

कोयम्बत्तूर.
मुनि हितेशचन्द्र विजय ने कहा है कि लोग विषय में उलझ गए हैं। उन्होंने अपना चित और मन विषय को अर्पित कर दिया है। इससे किसी को समाधान नहीं मिलता। मुनि बुधवार को आराधना भवन में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संगति देख -परख कर करनी चाहिए। ऊपरी बातों व तड़क भड़क में न आएं।
ऊपर -ऊपर मधुर बातें और भीतर से विष भरा हो तो ऐसे व्यक्ति की संगति नहीं करना ही अच्छा है। मुनि ने कहा कि जिसे जैसा उचित लगें उसे वैसा सम्मान दें।
छोटों को संतुष्ट करें और बड़ों के आगे हमेशा नम्र रहें।हमेशा मधुर भाषण करें। उन्होंने कहा कि आलस्य को आश्रय नहीं दें। क्योंकि वह सारे जीवन का नाश कर देता है। पराधीनता अत्यन्त कठिन होती यह बात सही है पर संसार में ऐसा कौन है जो पराधीन नहीं है।फिर भी दब्बू बन कर नहीं रहें ।
आलस्य से हमेशा दूर रहें। शरीर को जितने आराम की जरूरत होती है उतना ही विश्राम करें। मुनि ने कहा कि पीछे क्या बीत गया यह नहीं देखें। कल क्या होगा इसकी चिन्ता नहीं करें।
आज व्यवहार में जैसा उचित होगा। वैसा ही करें और निरंतर प्रयत्न करते रहें। मुनि ने कहा कि आज जो मिल रहा है उसे प्राप्त करें। भविष्य में अधिक प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाए। उन्होंने कहा कि व्यवहार में दक्षता होनी चाहिए।
हमेशा अचूक प्रयत्न किया जाना चाहिए। गृहस्थी में हमेशा सतर्क रहें और सत्य का पल्ला पकड़ें। उन्होंने कहा कि ऐसा व्यवहार करें कि जिससे किसी का नुकसान नहीं हो। हमेशा यह ध्यान रखें कि हम भगवान के हैं।
प्रवचन के बाद नमस्कार महामंत्र की आराधना प्रारम्भ हुई। नवकार पद के अनुसार तीर्थ की वंदना भाव यात्रा से की गई।
Comments