ईरोड. जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने कहा है कि जन में से जैन बनने के लिए जीवन में दो कर्तव्यों को अपनाना पड़ेगा। पहला दया और दूसरा दान।उन्होने कहा कि जैसे हमें सुख की इच्छा है और दु:ख के प्रति अलगाव है। वैसे ही सभी जीवों को सुख पाने और दु:ख से दूर रहने की की इच्छा होती है।
जैनाचार्य बुधवार को ईरोड़ के कुंथुनाथ जैन भवन में आयोजित धर्म सभा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अपने सुख की चिन्ता तो हर कोईकरता है। पर दूसरों के दु:खों को देख कर जिसका हृदय द्रवित होता है व उसके दु:खों को दूर करने के लिएयथा संभव प्रयत्न करता है वही महान बन सकता है।
आचार्य ने कहा कि जो अपने जीवन में दया और दान का आचरण करता है, उसे अवश्य ही दुआ ङ्क्षमलती है।दवा से भी ज्यादा ताकत दुआ की है।
जिसे दु:खी प्राणियों की दुआ मिलती है, उसे दवा लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती।परन्तु आज व्यक्ति जितने पैसे खर्च दवाओं पर करता है , उशका अंश भी दुआ पाने के लिए नहीं करता।उन्होंने कहा कि विज्ञान ने वनस्पति में भी जीवन को सिद्ध किया है। लेकिन उसमें जीवन को जान कर के भी मात्र उपलब्धिां प्राप्त करना उनका लक्ष्य है। जबकि परमात्मा ने जीवन को बनाया है साथ ही उसके प्रति दया-जीव दया के पालन का कर्तव्य भी बनाया है।
उन्होंने कहा कि जैसा व्यवहार हम अन्य से अपेक्षा रखते है, वैसा ही व्यवहार हमें अन्य सभी जीवों के प्रति रखना चाहिए।
पश्चिमी संस्कृति की दृष्टि मात्र एक जन्म की है, बस खाओ , पीओ और मजा करो। यही जीवन मंत्र है।जबकि भारतीय संस्कृित में इस जन्म के साथ आत्मा और परलोक की दृष्टि है।आचार्य ने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति की हवा भारतीय संस्कृति पर छायी हुई है।इसलिए लक्ष्य मात्र पैसा पा कर मौज-शौक ही करना रह गया है।पैसे से कोई सुखी नहीं हो जाता। इसके लिए वीतराग परमात्मा के बताए गए मार्ग का आचरण करना होगा। धर्मसभा से पहले जैनाचार्य साधु-साध्वियों के साथ इन्दिरा नगर के वासुपूज्य स्वामी जैन मंदिर से शोभायात्रा के रुप में तप्पाकुलम स्ट्रीट स्थित कुंथुनाथ जैन मंदिर आए। यहां दर्शन के बाद प्रवचन हुए।गुरुवार को यहां सुबह नौ बजे समाधि मरण की भाव यात्रा का कार्यक्रम होगा।
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