जीवन में हमेशा करुणा एवं दया का भाव होना चाहिए। जीव मात्र के प्रति दया होना चाहिए। जीवों के प्रति संवेदना एवं वात्सल्यता जरूरी है। हमेशा संवेदना उत्पन्न हो, विराधना न करें। जीवन में जमा कर्म रूपी कचरा दूर करना होगा। यह बात आचार्य जयानंद सूरीश्वर ने पांच दिवसीय बड़ी दीक्षा के अवसर पर आयोजित पंचाह्निका महोत्सव के अंतर्गत पहले दिन नगर प्रवेश पर धर्मसभा में कही।
उन्होंने कहा पुण्य के बिना शासन की प्राप्ति नहीं होती। निंदा में नहीं प्रशंसा में सुख है। धर्मसभा में मुनि दिव्यानंद विजयजी ने कहा मनुष्य अपना जीवन छल, कपट, निंदा, लोभ में बिता रहा है। धर्म और परोपकार का मार्ग जीवन कल्याण का मार्ग है। प्रन्यास प्रखर राजर| विजय ने कहा जीवन में संवेदना शून्य हो चुकी है तो फिर रिश्ते कहां चल पाएंगे। दुर्लभ मानव जीवन में संवेदना का होना नितांत आवश्यक है। सभी भाइयों में राम-लक्ष्मण जैसा प्रेम स्नेह होना चाहिए। नगर के ओरा परिवार के रमेशचंद्र ओरा अब संयम जीवन ग्रहण के पश्चात अब राजविजय के नाम से जाने जाते हैं। उनके प्रथम नगर आगमन पर उन्होंने श्रीसंघ को संबोधित करते हुए कहा मनुष्य भव बार-बार नहीं मिलता है। इसके पूर्व 50 से अधिक साधु-साध्वी भगवंत के सान्निध्य में चल समारोह ज्ञान मंदिर से निकला। जहां नगर में जगह-जगह अक्षत गहुली कर गुरुदेव से आशीर्वाद लिया। चल समारोह में घोड़े, बैंडबाजे के साथ महिला परिषद ने कलश के साथ गुरुदेव की आगवानी की।
युवाओं की टोली ओ गुरुसा थारो चेलो बनू... में भजन पर थिरक रही थी। गुरुदेव के जयकारे लग रहे थे। धर्मसभा में गुरुवंदन मुनि दिव्यानंद विजय ने कराया। संचालन करते हुए शांतिलाल गोखरू ने कार्यक्रमों की जानकारी दी।
शक्रस्तव अभिषेक आज
दीक्षा मीडिया प्रभारी राजकुमार नाहर ने बताया रविवार सुबह 7 बजे शक्रस्तव अभिषेक का कार्यक्रम अजीतनाथ मंदिर में होगा। सुबह 9.45 बजे आचार्यश्री के प्रवचन होंगे। साथ ही जयंतसेन सूरीश्वर की मासिक पुण्य सप्तमी पर ज्ञान मंदिर में गुरु गुणानुवाद सभा होगी। दोपहर 2 बजे जयंतसेन सूरी अष्टप्रकारी पूजन महिला मंडल पढ़ाएगी। शनिवार दोपहर ज्ञान मंदिर में नवकार जप पगरिया परिवार की ओर से कराए गए। लाभार्थी शांताबाई रतनलाल गिरिया एवं शंकरलाल ताराचंद दंगवाड़ा वाले थे।
आचार्यश्री और साधु-साध्वी के नगर आगमन पर निकले चल समारोह में शामिल समाजजन।
भास्कर संवाददाता | बड़नगर
जीवन में हमेशा करुणा एवं दया का भाव होना चाहिए। जीव मात्र के प्रति दया होना चाहिए। जीवों के प्रति संवेदना एवं वात्सल्यता जरूरी है। हमेशा संवेदना उत्पन्न हो, विराधना न करें। जीवन में जमा कर्म रूपी कचरा दूर करना होगा। यह बात आचार्य जयानंद सूरीश्वर ने पांच दिवसीय बड़ी दीक्षा के अवसर पर आयोजित पंचाह्निका महोत्सव के अंतर्गत पहले दिन नगर प्रवेश पर धर्मसभा में कही।
उन्होंने कहा पुण्य के बिना शासन की प्राप्ति नहीं होती। निंदा में नहीं प्रशंसा में सुख है। धर्मसभा में मुनि दिव्यानंद विजयजी ने कहा मनुष्य अपना जीवन छल, कपट, निंदा, लोभ में बिता रहा है। धर्म और परोपकार का मार्ग जीवन कल्याण का मार्ग है। प्रन्यास प्रखर राजर| विजय ने कहा जीवन में संवेदना शून्य हो चुकी है तो फिर रिश्ते कहां चल पाएंगे। दुर्लभ मानव जीवन में संवेदना का होना नितांत आवश्यक है। सभी भाइयों में राम-लक्ष्मण जैसा प्रेम स्नेह होना चाहिए। नगर के ओरा परिवार के रमेशचंद्र ओरा अब संयम जीवन ग्रहण के पश्चात अब राजविजय के नाम से जाने जाते हैं। उनके प्रथम नगर आगमन पर उन्होंने श्रीसंघ को संबोधित करते हुए कहा मनुष्य भव बार-बार नहीं मिलता है। इसके पूर्व 50 से अधिक साधु-साध्वी भगवंत के सान्निध्य में चल समारोह ज्ञान मंदिर से निकला। जहां नगर में जगह-जगह अक्षत गहुली कर गुरुदेव से आशीर्वाद लिया। चल समारोह में घोड़े, बैंडबाजे के साथ महिला परिषद ने कलश के साथ गुरुदेव की आगवानी की।
युवाओं की टोली ओ गुरुसा थारो चेलो बनू... में भजन पर थिरक रही थी। गुरुदेव के जयकारे लग रहे थे। धर्मसभा में गुरुवंदन मुनि दिव्यानंद विजय ने कराया। संचालन करते हुए शांतिलाल गोखरू ने कार्यक्रमों की जानकारी दी।
शक्रस्तव अभिषेक आज
दीक्षा मीडिया प्रभारी राजकुमार नाहर ने बताया रविवार सुबह 7 बजे शक्रस्तव अभिषेक का कार्यक्रम अजीतनाथ मंदिर में होगा। सुबह 9.45 बजे आचार्यश्री के प्रवचन होंगे। साथ ही जयंतसेन सूरीश्वर की मासिक पुण्य सप्तमी पर ज्ञान मंदिर में गुरु गुणानुवाद सभा होगी। दोपहर 2 बजे जयंतसेन सूरी अष्टप्रकारी पूजन महिला मंडल पढ़ाएगी। शनिवार दोपहर ज्ञान मंदिर में नवकार जप पगरिया परिवार की ओर से कराए गए। लाभार्थी शांताबाई रतनलाल गिरिया एवं शंकरलाल ताराचंद दंगवाड़ा वाले थे।
जीवन में हमेशा करुणा एवं दया का भाव होना चाहिए। जीव मात्र के प्रति दया होना चाहिए। जीवों के प्रति संवेदना एवं वात्सल्यता जरूरी है। हमेशा संवेदना उत्पन्न हो, विराधना न करें। जीवन में जमा कर्म रूपी कचरा दूर करना होगा। यह बात आचार्य जयानंद सूरीश्वर ने पांच दिवसीय बड़ी दीक्षा के अवसर पर आयोजित पंचाह्निका महोत्सव के अंतर्गत पहले दिन नगर प्रवेश पर धर्मसभा में कही।
उन्होंने कहा पुण्य के बिना शासन की प्राप्ति नहीं होती। निंदा में नहीं प्रशंसा में सुख है। धर्मसभा में मुनि दिव्यानंद विजयजी ने कहा मनुष्य अपना जीवन छल, कपट, निंदा, लोभ में बिता रहा है। धर्म और परोपकार का मार्ग जीवन कल्याण का मार्ग है। प्रन्यास प्रखर राजर| विजय ने कहा जीवन में संवेदना शून्य हो चुकी है तो फिर रिश्ते कहां चल पाएंगे। दुर्लभ मानव जीवन में संवेदना का होना नितांत आवश्यक है। सभी भाइयों में राम-लक्ष्मण जैसा प्रेम स्नेह होना चाहिए। नगर के ओरा परिवार के रमेशचंद्र ओरा अब संयम जीवन ग्रहण के पश्चात अब राजविजय के नाम से जाने जाते हैं। उनके प्रथम नगर आगमन पर उन्होंने श्रीसंघ को संबोधित करते हुए कहा मनुष्य भव बार-बार नहीं मिलता है। इसके पूर्व 50 से अधिक साधु-साध्वी भगवंत के सान्निध्य में चल समारोह ज्ञान मंदिर से निकला। जहां नगर में जगह-जगह अक्षत गहुली कर गुरुदेव से आशीर्वाद लिया। चल समारोह में घोड़े, बैंडबाजे के साथ महिला परिषद ने कलश के साथ गुरुदेव की आगवानी की।
युवाओं की टोली ओ गुरुसा थारो चेलो बनू... में भजन पर थिरक रही थी। गुरुदेव के जयकारे लग रहे थे। धर्मसभा में गुरुवंदन मुनि दिव्यानंद विजय ने कराया। संचालन करते हुए शांतिलाल गोखरू ने कार्यक्रमों की जानकारी दी।
शक्रस्तव अभिषेक आज
दीक्षा मीडिया प्रभारी राजकुमार नाहर ने बताया रविवार सुबह 7 बजे शक्रस्तव अभिषेक का कार्यक्रम अजीतनाथ मंदिर में होगा। सुबह 9.45 बजे आचार्यश्री के प्रवचन होंगे। साथ ही जयंतसेन सूरीश्वर की मासिक पुण्य सप्तमी पर ज्ञान मंदिर में गुरु गुणानुवाद सभा होगी। दोपहर 2 बजे जयंतसेन सूरी अष्टप्रकारी पूजन महिला मंडल पढ़ाएगी। शनिवार दोपहर ज्ञान मंदिर में नवकार जप पगरिया परिवार की ओर से कराए गए। लाभार्थी शांताबाई रतनलाल गिरिया एवं शंकरलाल ताराचंद दंगवाड़ा वाले थे।
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