इंदौर - खातेगांव . आषाढ़ सुदी पंचमी वि.सं. 2025 (30 जून 1968) रविवार, सुबह का समय, शहर-अमजेर, स्थान- सोनीजी की नसिया। माइक से आवाज आई- आज परम पूज्य गुरुश्री ज्ञानसागरजी महाराज अपने परम मेधावी, परम-तपस्वी शिष्य, युवा योगी, ब्रह्मचारी श्रीविद्याधरजी को जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान करेंगे। हालांकि मंदिरों के श्याम पट पर खड़िया से इसकी सूचना पहले से लिखी हुई थी।
मंच पर ऊंचे सिंहासन पर गुरुवर श्रीज्ञानसागरजी विराजित थे। क्षुल्लक सन्मतिसागरजी, क्षुल्लक संभवसागरजी, क्षुल्लक सुखसागरजी एवं संघस्थ अन्य ब्रह्मचारी भी आसीन थे। कुछ दूरी पर ब्र. विद्याधर बैठे थे। पास ही शहर के श्रेष्ठी विद्वान, गुणीजन बैठे थे। मंच के सामने अपार जनसमुदाय था।
22 साल की उम्र में ली थी मुनिश्री ने दीक्षा; केशलोच के समय बह रहा था रक्त : दीक्षा समारोह प्रारंभ हुआ। ब्र. विद्याधर ने खड़े होकर गुरुवर की वंदना की। हाथ जोड़कर दीक्षा प्रदान करने की प्रार्थना की। गुरुवर का आदेश पाकर ब्र. विद्याधर वैराग्यमयी, सारगर्भित वचनों से जनता को उद्बोधन दिया। इसके बाद विद्याधर ने केशलोच करना प्रारंभ कर दिया। फिर सिर के बाल निकालते हुए कुछ स्थानों से रक्त निकल आया। विद्याधर के चेहरे पर आनंद खेल रहा था।
फिर हाथ आ गए दाढ़ी पर। चेहरे से भी रक्त निकलने लगा। श्रावक सफेद वस्त्र ले उनकी तरफ दौड़ पड़े, पर उन्होंने चेहरे को किसी को छूने नहीं दिया। केश लुन्च पूर्ण होते ही पंडितों-श्रावकों और अपार जनसमूह के समक्ष गुरु ज्ञानसागरजी संस्कारित कर उन्हें दीक्षा प्रदान की। विद्याधर ने वस्त्र छोड़ दिगम्बरत्व धारण कर लिया। आचार्य ज्ञानसागरजी ने विद्याधर को पिच्छी-कमंडल सौंपते हुए नाम दिया-मुनि विद्यासागर और पूरे सभा मंडप में मुनि विद्यासागर की जय-जयकर होने लगी। आचार्य पद की उपाधि मिलने के बाद आचार्य विद्यासागर ने देश भर में पदयात्रा की। चातुर्मास, गजरथ महोत्सव के माध्यम से अहिंसा व सद्भाव का संदेश दिया। समाज को नई दिशा दी।
कर्नाटक में जन्में आचार्य विद्यासागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्रीमति ने उनका नाम विद्याधर रखा था। (जैसा विद्यासागरजी महाराज की मुनि दीक्षा के समय अजमेर में मौजूद खातेगांव फेनीदेवी गंगवाल ने बताया)। फेनीदेवी की उम्र अभी 87 साल है।
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