आलीराजपुर. नगर के मध्य स्थित 164 साल पुराने जैन मंदिर के जीर्णोद्धार की प्रथम शुरुआत आचार्य नित्सेन सूरिश्वर की शिष्या साध्वी अविचलदृष्टा श्रीजी की निश्रा में प्रतिमा उत्थापन के साथ हुई। इसके बाद भगवान की 30 और अन्य 5 प्रतिमाओं को विधि-विधान से उत्थापित कर राजेंद्र हॉल में गाजे-बाजे के साथ विराजित किया गया। इस दौरान जैन समाजजन इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बनने को लेकर उत्साहित नजर आए।
संपूर्ण कार्यक्रम करीब 5 घंटे तक चला। इससे पहले सुबह 7.00 बजे से ही मंदिर में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक पहुंच गए थे। सभी ने मंदिर में विराजित भगवान की अंतिम बार पूजा की। हर कोई पूजा करने को लेकर उत्सुक नजर आया। इस दौरान मंदिर में भगवान आदिनाथ के जयकारे और स्तवन गूंजते रहे। सुबह करीब ८.४५ बजे शुभ मुहुर्त में मूल नायक की प्रतिमा के सामने सकल जैन श्रीसंघ ने भगवान की प्रतिमा उत्थापित करने के लिए सामूहिक प्रार्थना की। इसके बाद प्रतिमा उत्थापित करने वाले परिवार ने मूल गभारे में प्रवेश किया। यहां साध्वी अविचलदृष्टा श्रीजी आदि ठाणा 4 की निश्रा में विधिकारक तिलोक भाई पारा वाले ने प्रतिमा उत्थापित करने की प्रक्रिया शुरू की। लाभार्थी परिवार ने चांदी की छैनी और हथौड़ी से भगवान आदिनाथ की प्रतिमा को उत्थापित किया। इसके बाद मंदिर में स्थापित सभी प्रतिमाओं को लाभार्थी परिवार के सदस्यों ने उत्थापित करना शुरू किया और मंदिर के सभा मंडप में पाट पर सभी प्रतिमाएं रखी गई। इस दौरान मंदिर में गाजे-बाजे, घंटे, शंख और स्तवन की ध्वनि गूंजती रही। हर कोई प्रतिमा उत्थापित करने की प्रक्रिया को देखता रहा।
भगवान की प्रथम गहूली की बोली लगाई गई। इसके बाद मंदिर से मूलनायक भगवान आदिनाथ की प्रतिमा को लाभार्थी परिवार लेकर राजेंद्र हॉल की ओर गाजे-बाजे के साथ रवाना हुआ। इसके पीछे अन्य 34 प्रतिमाओं को एक-एक कर लाभार्थी परिवार के सदस्य लेकर राजेंद्र हॉल में पहुंचे। यहां सभी प्रतिमाओं को पाट पर रखा गया और विधि-विधान से प्रक्रिया की गई। इसके बाद राजेंद्र हॉल में साध्वी अविचलदृष्टा श्रीजी व विधिकारक ने विधि-विधान से प्रक्रिया पूर्ण करवाकर सभी प्रतिमाओं को विराजित करवाया। फिर सामूहिक चैत्यवंद किया गया। इस दौरान राजेंद्र हॉल में ढोल-ताशों की थाप पर समाज के महिला-पुरुष व युवक-युवतियों ने गरबा किया। सभी समाजजन में मंदिर जीर्णोद्धार को लेकर विशेष उत्साह रहा। प्रतिमा उत्थापित व विराजित करने के पश्चात मंदिर के शिखर पर से ध्वजा उतारी गई और कलश निकाला गया।
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