बड़ौदा गांव में एसएस जैन सभा स्थानक में चारित्र चुड़ामणि मायाराज जी महाराज के 165वें अवतरण दिवस पर जैनाचार्य सुभद्र मुनि ने कहा कि मायाराम जी महाराज का जीवन आदर्श, संयम, तप-त्याग, परिषह विजेता रहा।
जन-जन में प्रेम का संदेश दिया। इस धरा पर जन्म लेकर गुरुदेव गंगाराम, गुरुदेव रतिराम महाराज के सान्निध्य में आकर धर्म की बोधि प्राप्त कर संयम का मार्ग स्वीकार किया। गुरुदेव हरनाम दास की मौजूदगी में जैन दीक्षा अंगीकार की।
जैनाचार्य ने कहा कि जीवन में गुरु का विशिष्ट महत्व है। जीव को सनमार्ग दिखाता है। अंधकार को प्रकाश की आत्मा गतिमान होती है। स्व दर्शन, आत्म चिंतन, सद् विचार, प्राणी मात्र से प्रेम का भाव आता है। गुरु बिना ज्ञान नहीं मिलता है। मायाराम महाराज के जीवन, चित्त, मन में परायपन नहीं था। प्रत्येक संप्रदाय से अपनत्व था। उनका कंठ पंजाब की कोयल जैसा अद्भुत शोभा से अलंकृत था। उनका जीवन 1854 में हुआ था। लगभग 24 वर्ष की उम्र में दीक्षा स्वीकार की।
उन्होंने कहा कि दीक्षा स्वीकार कर स्वाध्याय, ध्यान, योग, मौन, तप, आत्म चिंतन की साधना प्रारंभ की। बच्चों को शिक्षा के प्रेरणा स्रोत वो रहे। समाज उत्थान, समाज सुधार में अनेक कार्य किए। बाल प्रथा, दहेज आदि दुर्गुण प्रवृत्ति में संमार्ग दिखाया। बड़ौदा गांव में सबसे पहले जैन संत वो बने। समाज सुधारक के रूप में उनकी भूमिका से प्रभावित होते हुए बड़ौदा से अनेक जैन संत, साध्वी बने। अब तक 50 से ऊपर बड़ौदा से साधु, साध्वी बन चुके है। पूरे देश में बड़ौदा ऐसा गांव है जहां से इतने जैन समाज के संत, साध्वी हो। टोहाना जज आजाद चहल को जैनाचार्य सुभद्र मुनि द्वारा तप सम्राट हरिमुनि पर लिखी किताब भेंट की।
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