कोयम्बत्तूर. आचार्य विजयरत्न सेन सूरिश्वर ने कहा कि जीरावाला पाश्र्वनाथ भगवान की महिमा अपरंपार है। पाश्र्वनाथ के स्मरण से संकट दूर हो जाते हैं।
आचार्य ने गुरुवार को वत्सा राजगुरु अपार्टमेंट में जीरावाला पाश्र्वनाथ जैन मंदिर में भगवान की स्तुतियों के माध्यम से संगीतमय भावयात्रा कराई। आचार्य ने भगवान की महिमा व इतिहास बताते हुए कहा कि सभा के बीच में जब कोई एक व्यक्ति बोलता है तो उसकी बात को कोई स्वीकार नहीं करता, चाहे वह हितकारी ही क्यों न हो। इसका कारण अपना आदेश नाम कर्म है। पुण्य कर्म के कारण व्यक्ति सम्मान व प्रगति प्राप्त करता है।
आचार्य ने कहा कि ऋषभ देव स्वामी से भगवान महावीर तक २४ तीर्थंकर हुए। २३ वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ सर्वाधिक प्रभावशाली है। उन्होंने पूर्व जन्म में देवलोक में ५०० तीर्थंकरों का कल्याणक महोत्सव किया था, जिसके फलस्वरूप आदेश नाम कर्म उपार्जन से उनके निर्वाण के 2800 वर्ष बाद भी सर्वाधिक स्त्रोत, मंदिर, प्रतिमा व नाम स्मरण पाश्र्वनाथ के नाम से ही है। किसी भी जैन मंदिर की प्रतिष्ठा के समय प्रभु की पीठिका पर सबसे पहले जीरावाला पाश्र्वनाथ भगवान का मंत्र केसर के द्वारा लिखा जाता है।
राजस्थान के आबू पर्वत की तलहटी में जीरावाला तीर्थ रहा। यह प्रतिमा चंद्रयश राजा ने बनवा कर प्रभु के प्रथम गणधर शुभ स्वामी के हाथों प्रतिष्ठित करवाई थी। बाद में कई आक्रमण हुए तो प्रतिमा को भूमि में छिपाया। आचार्य ने बताया कि विक्रम संवत 1191 में वरमाण वासी धांधल सेठ ने प्रतिमा को खोज निकाला और जीरावाला नगर में आचार्य अजीत देव सूरि के जरिए प्रतिष्ठि करवाई। तभी से प्रतिमा जीरावाला पाश्र्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुई। आचार्य ने कहा कि पाश्र्वनाथ का नाम, स्मरण, सेवा व पूजा भक्ति से जीवन के संकट दूर होते हैं। श्रद्धा व भक्तिपूर्वक परमात्मा के जााप से हमारी बीमारियां, रोग शांत होते हैं और आत्मा के उत्कर्ष मार्ग में सहायक बल प्राप्त होता है।
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