रायपुर।
जैसे किसान खेत में बीज बोने से पहले वहां से घास, खरपतवार निकालकर खेत की सफाई करता है। हल चलाकर नरम करता है, कंकड़-पत्थर निकालकर खाद डालता है। जब भूमि बोने योग्य हो जाती है, तब उसमें ऋतु के अनुसार निर्दोष बीज बोता है। समय-समय पर उसकी सिंचाई करता है। जब तक फसल नहीं पकती उसको हानि पहुँचाने वाले जीव-जंतु तथा मनुष्यों से रक्षा करता है। पक जाने पर फसल काटता है। ठीक उसी तरह सद्गुरु रूपी किसान शिष्य के चित्त रूपी भूमि में कर्म उपासनादि बीज बोने से पहले उसके दुर्व्यसनों को दूर करते हैं। यह आदर्श नगर मोवा में सत्संग के दौरान भक्तों को दिया। उन्होंने कहा कि गुरु की आज्ञा मानने वाले शिष्यों का ही कल्याण होता है।
ज्ञान के बीज से शिष्य का संवारते हैं जीवन
यदि शिष्य की कर्म में रुचि है, संसार के भोगों से वैराग्य नहीं है, तो वह कर्म का अधिकारी है। उसे कर्म का उपदेश देते हैं। यदि वह संसार में न अधिक अनुरक्त है न विरक्त ही है, मध्यम श्रेणी का है, तो भक्ति योग का उपदेश देते हैं। यदि लोक-परलोक के भोगों से परम विरक्त है तो ज्ञान का बीज डालकर जब तक वह परिपक्व नहीं होता, तब तक कामादि शत्रुओं से रक्षा करते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि शिष्य कुछ भी न करे, उसे गुरु आज्ञानुसार चलना चाहिए।
चार तरह से जीव पर कृपा
जीव पर चार कृपा होने से ही जीव का कल्याण होता है। पहली ईश्वर कृपा यानि मनुष्य शरीर की प्राप्ति। शास्त्र कृपा यानि शास्त्रानुसार आचरण एवं शास्त्रोक्त गुरु की प्राप्ति तथा गुरु कृपा यानी रहस्यों सहित सद्गुरु से दीक्षा की प्राप्ति। ये सभी कृपा होने पर भी यदि शिष्य शास्त्र और गुरुओं की आज्ञा का पालन नहीं करता, तो तीनों कृपा व्यर्थ हो जाती है। इसलिए जो शिष्य गुरु की आज्ञा का पालन करता है, उसी का कल्याण होता है, दूसरे का नहीं।
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