शहर में गणिपद प्रदान महोत्सव को लेकर 2 जून से 6 जून तक विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम होंगे। इसे लेकर रविवार को सुबह 8.30 बजे जैन संतों का नगर में मंगल प्रवेश हुआ। यह शोभायात्रा के रूप में नईआबादी स्थित श्रेयांसनाथ मंदिर से शहर के विभिन्न मार्गों से होकर रूपचांद आराधना भवन पहुंची। जहां जैन संत बागड़ विभूषण मृदुर सागर सूरि, मोक्षरर सागर, मुनिर सागर, अध्यात्मयोगी आदर्शर सागर, अक्षवर सागर, विशुद्ध सागर, अर्हंर सागर, पवित्रर सागर, समकितर सागर, तत्वर सागर मसा के प्रवचन हुए।
गणिपद पद महोत्सव को लेकर शहर के दशरथनगर में कार्यक्रम स्थल का चयन किया है। यहां 30 हजार स्क्वेयर फीट में पंडाल बनेगा। स्टेज को भोपावर स्थित शांतिनाथ मंदिर की तर्ज पर उज्जैन के कलाकारों द्वारा तैयार किया जाएगा। साथ ही कार्यक्रम स्थल पर 25-25 हजार स्क्वेयर फीट के तीन बड़े पंडाल भी बनाए जाएंगे। जैन संत अक्षतर सागरजी मसा ने बताया कि अध्यात्मयोगी गणिपद प्रदान महोत्सव समिति द्वारा आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को लेकर रूपरेखा तैयार की है। 2 जून को शाम 7 बजे भक्ति कार्यक्रम के साथ धार्मिक तंबाेला होगा। 3 जून को कवि सम्मेलन होगा, जिसमें कवि सुरेंद्र शर्मा, अनामिका अंबर, शशिकांत यादव हास्य, वीर व शृंगार रस पर आधारित कविताओं का पाठ करेंगे। 4 जून काे दानवीर मोतीशा सेठ के जीवन पर आधारित नाटिका की प्रस्तुति होगी। 5 जून को गणिपद प्रदान महोत्सव होगा जिसमें आदर्शर| महाराज साहब को गणिपद प्रदान किया जाएगा। कार्यक्रम में प्रदेश सहित राजस्थान, गुजरात व अन्य क्षेत्रों से 30 हजार के करीब जैन समाजजन जुटेंगे। साथ ही 150 से अधिक संत व साध्वियां भी शामिल होंगी।
नगर में जैन संतों का मंगल प्रवेश, निकाली शोभायात्रा।
गणि अर्थात साधुओं का नायक कहा जाता है
जब संत आध्यात्मिक साधनों में मार्गस्थ बन जाते हैं। वे अपने कर्माें का नाश कर आत्मकल्याण में लग जाते हैं और बरसों साधना के बाद उत्कृष्ट श्रेणी में पहुंच जाते हैं तब उनको गुरुदेव के द्वारा एक ऐसी विद्या दी जाती है जो जनमानस के दु:ख दूर करने की क्षमता रखती है। उस विद्या को वर्धमान विद्या कहा जाता है। देश में इस विद्या के धारक गिनती के ही संत हैं। इस विद्याधारक को गणि अर्थात साधुओं का नायक कहा जाता है।
आदर्शरजी ने 18 साल की आयु में ली दीक्षा
आदर्शरजी मसा 18 साल की आयु में आचार्य नवर|सागर सूरिजी मसा से मिले और दीक्षा के लिए अनुरोध किया। कुछ समय संतों के साथ रहने के बाद वैराग्य इतना प्रबल बना कि दीक्षा ग्रहण की और मात्र 16 साल में उत्कृष्ट साधना कर देश के विभिन्न प्रांतों में भ्रमण कर गुरुदेव की सेवा, ध्यान, तप, आयंबिल और जप के कारण अब गणिपद पर आसीन हो रहे हैं।
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