ग्वालियर - डीडवाना - ओली में स्थित 300 साल पुराने श्री दिगंबर जैन बड़ा मंदिर तेरापंथी पंचायती में गुरुवार को पंचमेरू की स्थापना की गई। भक्तों ने कांच की वेदी का शुद्धिकरण करने के बाद पंचमेरू जिनबिंब को वेदी में स्थापित किया। मंदिर में वर्तमान में 163 प्रतिमाएं स्थापित हैं। इनमें चांदी, मूंगा, स्फटिक, मणि, स्लेट, पाषाण, कसौटी, संगमरमर की प्रतिमाएं शामिल हैं। मंदिर में स्थापित प्रतिमाएं 1 इंच से लेकर 5 फीट तक की हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ पंचमेरू मंडल में प्रतिष्ठाचार्य पं. अजीतकुमार शास्त्री के मार्गदर्शन में किया गया। सबसे पहले मंत्रोच्चार के साथ कलश स्थापना की गई। विधान में श्रद्धालुओं ने इंद्र-इंद्राणियों का भेष धारण कर प्रथम सुदर्शन मेरू, दूसरे विजय मेरू, तीसरे अचल मेरू, चौथे मंदर मेरू और पांचवें विद्युत मेरू की स्थापना की।
पंचमेरू के ऊपर लगाए चांदी के छत्र
जैन समाज के लोगों ने भक्तिभाव के साथ पंचमेरू जिनबिंब को जयकारों के साथ नव निर्मित कांच की वेदी में स्थापित किया। पंचमेरू के ऊपर चांदी के छत्र भी लगाए गए हैं। वेदी इस तरह बनाई गई है कि मंदिर में कहीं भी खड़े होकर पंचमेरू के दर्शन कर सकेंगे।
पंचमेरू जिनबिंब को जयकारों के साथ नव निर्मित कांच की वेदी में स्थापित किया गया।
पहले यहां तीन मेरू थे, अब हो गए पांच
महिलाओं ने मंगल कलशों के शुद्ध जल, हल्दी, चंदन, केसर आदि से वेदी की शुद्धि की। मंदिर की स्थापना के साथ ही यहां पर सिर्फ तीन मेरू थे, जबकि हर मंदिर में पांच पंचमेरू होते हैं। दो मेरू की तलाश सालों से देश भर के मंदिरों में की जा रही थी। जब तलाश करने के बाद भी दो मेरू नहीं मिले तो मंदिर कमेटी के अध्यक्ष निर्मल पाटनी, अनूप सौगानी और तेजकुमार सेठी ने दो मेरू मुरादाबाद के कारीगरों से तैयार कराए।
मंदिर निर्माण में किया है 2 मन सोने का उपयोग
मंदिर का निर्माण भादों सुदी 2 संवत 1761 में हुआ था। मंदिर निर्माण में 45 साल का समय लगा। मंदिर निर्माण के दौरान सजावट के लिए कारीगरों ने दो मन सोने का उपयोग किया था। मंदिर में मूल नायक भगवान पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा है। इस प्रतिमा की स्थापना 1861 में की गई थी। मंदिर के गुंबद के भीतरी भाग में सोने की कारीगरी अौर खंभों पर कांच की जड़ाई का काम किया गया है।
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